सन्तुलन व समन्वय ही भौतिक संसार

(-) ऋणात्मकता (नकारात्मकता), 
(0) उदासीनता (Neutrality) व 
(+) धनात्मकता (सकारात्मकता),
का सन्तुलन व समन्वय ही भौतिक संसार की तीनों मूल व मौलिक सत्ताओं का धर्म है।
 इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन व प्रोटॉन क्रमश: उक्त तीनों स्थितियों के प्रतीक हैं। इनके सन्तुलित समन्वय के बिना परमाणु, अणु, तत्व, द्रव्य, पदार्थ, ग्रह-नक्षत्र, ब्रह्माण्ड, आदि, कुछ भी अस्तित्ववान नहीं हो सकता।
व्यक्ति के स्वभाव, प्रकृति, कर्म, आदि, भी तो सृजन, निष्क्रियता व विध्वंस की सत्ताओं में इधर-उधर डोलते रहते हैं। अपनी प्रज्ञानुसार व्यक्ति चुनाव करता है कि वह मूलत: किस सत्ता क्षेत्र में समय का उपयोग करे। तदनुसार ही उसे परिणाम या प्रतिफल प्राप्त होता रहता है।
अच्छे आदर्शों के धनी लोगों के कहे का अनुसरण करने पर स्वयम् के साथ समाज व देश को सत्परिणामों की सौगातें मिलने लगती हैं।
आज भी 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' के सामूहिक यज्ञ में आस्था व श्रद्धा सहित सम्मिलित होने का शुभ दिन आया है।