भारतीय क्षेत्र में 2020 पर  जलवायु बदलाव पर एक मुल्यांकन-भारत को अब गम्भीर आपदायों से निपटने को तैयार रहना होगा।

अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आयपीसीसी; Intergovernmental Panel on Climate Change; IPCC) अभी तक  जलवायु बदलाव पर रिपोर्ट बनाता रहा है। 1988 में स्थापित इस संगठन ने अपनी पहली रिपोर्ट 1990 में उपलब्ध करायी थी जिसकी गंभीरता को देखते हुये जलवायु बदलाव पर यूनाइटेड नेशंस के फ्रेमवर्क कन्वेंशन की स्थापना हुई जिसका उददेश्य गलोबल वार्मिंग को कम करना है।
वहीं 2020 में भारत की पृथ्वी मंत्रालय ने पहली बार जलवायु बदलाव पर रिपोर्ट दी  जिसका टाइटिल था  हमारे भारतीय क्षेत्र में 2020 पर  जलवायु वदलाव पर एक मुल्यांकन ,इसमें बताया गया  कि भारत का औसत तापमान 0.7 अंश बढ़ गया है। यह बदलाव 1901 से 2018 के मध्य हुये ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण हुआ है। वैज्ञानिको का मानना हैं कि तापमान में यह बडोत्तरी 2099 तक  2.7 डिग्री सेल्सियश तक पहुॅंच जायेगी। और अगर इंडिया के तापमान की बात करे तो भारत में इस सदी के अंत तक वर्तमान तापमान में 4.4  डिग्री सेल्सियश तक का और इजाफा होगा।


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 अगर समुद्र तल की बात करें तो प्रति दस साल में मुमबई का समुद्र तल का स्तर 3 सेमी  और बंगाल का 5 सेमी की दर से बढ रहा है। जो कि अन्य जगहो की तुलना में सबसे जायदा है।
अब अगर हम हिन्द महासागर की बात करे तो  1951 से लेकर 2015 के बीच में इसकी उपरी सतह पर तापमान 1 डिग्री बढ़ गया है। यह परिवर्तन विश्व के अन्य महासागरो के औसत तापमान से जायदा है।
पृथ्वी मंत्रालय द्वारा दि गई रिपोर्ट के आंकडो पर नजर डाले तो ये बहुत ही हैरान कर देने वाले है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाल आपदाओ का स्पष्ट संकेत दे रहे है।
मतलब साफ साफ है कि भारत को अब चक्रवातों ,गर्महवा यानी तेज लू,समुद्र के जल स्तर का बढ़ना,भुकम्प जेसे गम्भीर आपदायों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।