विज्ञान पुरोधा दीपक शर्मा राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित

विज्ञान पुरोधा दीपक शर्मा राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित


किसी भी शिष्य के लिए सबसे ज्यादा गर्व का पल वो होता है जब वह अपने गुरु से सीखे हुए ज्ञान का प्रयोग कर अपने गुरु के लिए कुछ तिनके भर भी कर सके । आज यह पल भगवन ने मुझे प्रदान किया है । मेरी कलम भी आज गर्वित महसूस कर रही है इस आर्टिकल को लिखते हुए। जिस पल का पुरे प्रगति विज्ञानं संस्था के परिवार को इंतज़ार था , वो पल हकीकत बनकर तब उतरा जब 28 फरवरी 2020 की सुबह को दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्टीय विज्ञान दिवस के सुबह अवसर पर, विज्ञान गुरु, श्री दीपक शर्मा जी को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सुशोभित किया गया। इस अवसर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री, डाक्टर हर्षवर्धन एवं महिला एवं बल विकास मंत्री , श्रीमती स्मृति ज़ुबिन ईरानी भी उपस्थित थे। उत्तर प्रदेश के श्री दीपक शर्मा जी  पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हे बच्चो के बीच विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। केवल यही नहीं, साइंस मीडिया एवम् पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट योगदान  के लिए भी उन्हें ' राजेन्द्र प्रभु मेमोरियल शील्ड इन साइंस मीडिया एंड जर्नलिज्म' से सम्मानित किया गया है, जिससे वे शायद पहले ऐसे व्यक्ति बन गए है जिन्हे दो राष्ट्रीय पुरस्कार एक साथ एक ही मंच पर मिले हैं। यह पुरस्कार उन्हें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग , भारत सरकार के अनुभाग  द्वारा उनके विज्ञान संचार में किये गए उत्कृष प्रयासों के लिए दिया गया है।


मेरठ जनपद के कबट्टा गांव में एक किसान परिवार में पैदा हुए दीपक शर्मा जी के पिता कालीचरण शर्मा अंग्रेजी के शिक्षक और माता उर्मिला शर्मा गृहणी हैं|  दीपक सर को बचपन से ही विज्ञान में रुचि रहीं । उनके क्रिएटिव बनने में उनके पिता की अहम राष्ट्रीयभूमिका रही | उनको बचपन में नन्दन, चंपक, चंदामामा, लोटपोट, साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि पत्रिकाएं पढ़ने को मिलती थी। जब कक्षा 11 में आए तब विज्ञान प्रगति के संवाददाता बन गए थे और तभी प्रगति विज्ञान संस्था की स्थापना की|  बाद में 2009 में तत्कालीन मेरठ की जिलाधिकारी श्रीमती कामनी चौहान रतन और मुख्यविकास अधिकारी एन एस राजू के निर्देशन में संस्था का पंजीकरण कराया गया, जिसका संरक्षण भौतिशास्त्री प्रोफ़ेसर एस पी खरे जी को बनाया गया।


उन्होंने 1991 में एन ए एस इन्टर कालेज में विज्ञान अध्यापन का कार्य शुरू  कर दिया था | वे
शुरुआती दौर से ही राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस का हिस्सा रहे |1984 से अब तक लगभग 12 लाख बाल वैज्ञानिकों तक आप पहुंचे हैं।  फिर शासन की जिला विज्ञान क्लब मेरठ के समन्वयक की जिम्मेदारी भी इनपर अा गई। जिसके चलते युवाओं, महिलाओं और किसानों में विज्ञान की समझ की जागरूकता अभियान में तेजी आयी।103 स्कूलों की प्रतिभागिता के साथ मेरठ जनपद देश का सबसे बड़ा आयोजन करने वाला जिला भी बना। वर्तमान में दीपक सर राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस, उत्तर प्रदेश, के राज्य शैक्षिक समन्वयक हैै |



दीपक शर्मा सर ने जो भी काम किया उसमे अपना शत प्रतिशत योगदान दिया और मन से काम किया यही कारण रहा की 2001 में एनसीसी के कोर्स में देश के एनसीसी अधिकारियों के बीच फर्स्ट रैंक व फर्स्ट पोजिशन प्राप्त की । बच्चो मै हमेशा लोकप्रिय रहे दीपक शर्मा ने बच्चो के साथ मिलकर प्रथ्वी की परिधि मापने का प्रयोग प्रारंभ किया जो बाद में देश भर में लोकप्रिय हुआ। 2004 में शुक्र पारगमन के दौरान एन ए एस इन्टर कॉलेज के मैदान से  विश्व का इतिहास भी बना जब वैज्ञानिक प्रोफेसर एस पी खरे और तमिनाडु के टी रामालिंगम के साथ मिलकर प्रथ्वी से सूरज की दूरी मापी गई। इसी कारण मेरठ में एन ए एस इन्टर कॉलेज खगोलीय गतिविधियों के लिए जाने जाना लगा जिसका लाभ पूरे जनपद को हुआ।


2009 में शासन के सहयोग से विज्ञान केंद्र के लिए गरीब व मलिन बस्तियों के बच्चो के बीच काम करने के लिए बिजली बंबा बायपास पर जगह प्राप्त की जहां समय समय पर अच्छे व सफल कार्यक्रम होते रहे है लेकिन लगातार चोरी की घटनाओं ने काफ़ी नुकसान पहुंचाया हैं। इसी बीच में दीपक शर्मा सर ने गणित और विज्ञान के सूत्रों को संगीत बद्घ कराया। अंधविश्वास को दूर करना, खाद्य पदार्थो में मिलावट की जांच करना, दैनिक जीवन में विज्ञान, खगोलीय गतिविधि जैसे प्रोग्राम इतने लोकप्रिय हो गए कि दीपक शर्मा सर के ऊपर "बच के रहना रेे बाबा" के नाम से 74 एपिसोड का धारावाहिक महुआ टीवी चैनल द्वारा बनाया गया जिसकी शूटिंग एन ए एस इन्टर कालेज में ही की गई थी।


दीपक शर्मा जी एशिया के प्रथम अध्यापक हैं जिन्हें यूरोपियन साइंस मीट (फ़्रांस ) में आमंत्रित किया गया। विज्ञान संचार की सभी विधाओं का प्रयोग करते हुए बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए विज्ञान पत्रिका "विज्ञान आओ करके सीखे" के साथ ही विज्ञान चैनल की शुरआत भी 
कर दी। उन्होंने अपने प्रयास से देश भर में 200 से अधिक विज्ञान संचारकों को तैयार किया।
कक्षा में विज्ञान और गणित को पढ़ाते समय की वेडिओ भी समय समय पर तैयार करते रहे हैं। विज्ञान आधारित विश्व का सबसे पहला रियलिटी शो " विज्ञान घर"  के विज्ञान गुरु दीपक शर्मा ही थे। देश का पहला विज्ञान चैनल भी दीपक शर्मा जी बेहद कम संसाधन में चला रहे हैं। प्रथ्वी की परिधि नापने का प्रयोग व एनालेमा सन डायल देश भर के बच्चो मै सबसे जायदा लोकप्रिय रहे हैं।


 


ढेरों सम्मान के साथ ही राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी प्रयागराज द्वारा "राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षक"  सम्मान 2001 में दिया जा चुका हैं। दीपक सर बच्चो में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, जिज्ञासा व सृजनशीलता विकसित करने का काम करते हैं।इस दौरान बच्चों में वैज्ञानिक समझ विकसित करने के लिए विज्ञान संचार की सभी विधाओं का प्रयोग किया। विज्ञान के प्रयोगों को जीवन के साथ जोड़कर मजेदार तरीके से समझाना और बालको के साथ नई नई समस्याओं का समाधान निकालना उन्हें अच्छा लगता है |  इस सफर में आई सारीचुनौतियों का सामना उन्होंने निर्भीकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए करा। यहाँ तक का सफर आसान नहीं था मगर उनके परिवार, सुभचिंतको एवं प्रगति विज्ञान संस्था के पुरे परिवार के सहयोग से वे आज विज्ञान की दुनिया में अपना परचम लेहरवा पाय हैं और ईश्वर की कृपा से वे हर पल हर वर्ष ही नयी बुलंदियों को छुए और विज्ञान को जनमानस तक पहुंचते रहे। दीपक सर ने विज्ञान का जो दीपक मेरठ में जलाया वह आज सूर्य के समान चमक रहा हैं और वे इसी प्रकार हमेशा ही अंधकारो को मिटाते रहेगें|


जय विज्ञान !!!! जय अनुसन्धान !!!!!!


किसी भी शिष्य के लिए सबसे ज्यादा गर्व का पल वो होता है जब वह अपने गुरु से सीखे हुए ज्ञान का प्रयोग कर अपने गुरु के लिए कुछ तिनके भर भी कर सके । आज यह पल भगवन ने मुझे प्रदान किया है । मेरी कलम भी आज गर्वित महसूस कर रही है इस आर्टिकल को लिखते हुए। जिस पल का पुरे प्रगति विज्ञानं संस्था के परिवार को इंतज़ार था , वो पल हकीकत बनकर तब उतरा जब 28 फरवरी 2020 की सुबह को दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्टीय विज्ञान दिवस के सुबह अवसर पर, विज्ञान गुरु, श्री दीपक शर्मा जी को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सुशोभित किया गया। इस अवसर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री, डाक्टर हर्षवर्धन भी उपस्थित थे। उत्तर प्रदेश के श्री दीपक शर्मा जी  पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हे बच्चो के बीच विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। केवल यही नहीं, साइंस मीडिया एवम् पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट योगदान  के लिए भी उन्हें ' राजेन्द्र प्रभु मेमोरियल शील्ड इन साइंस मीडिया एंड जर्नलिज्म' से सम्मानित किया गया है, जिससे वे शायद पहले ऐसे व्यक्ति बन गए है जिन्हे दो राष्ट्रीय पुरस्कार एक साथ एक ही मंच पर मिले हैं। यह पुरस्कार उन्हें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग , भारत सरकार के अनुभाग  द्वारा उनके विज्ञान संचार में किये गए उत्कृष प्रयासों के लिए दिया गया है।


मेरठ जनपद के कबट्टा गांव में एक किसान परिवार में पैदा हुए दीपक शर्मा जी के पिता कालीचरण शर्मा अंग्रेजी के शिक्षक और माता उर्मिला शर्मा गृहणी थीं|  दीपक सर को बचपन से ही विज्ञान में रुचि रहीं । उनके क्रिएटिव बनने में उनके पिता की अहम राष्ट्रीयभूमिका रही | उनको बचपन में नन्दन, चंपक, चंदामामा, लोटपोट, साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि पत्रिकाएं पढ़ने को मिलती थी। जब कक्षा 11 में आए तब विज्ञान प्रगति के संवाददाता बन गए थे और तभी प्रगति विज्ञान संस्था की स्थापना की|  बाद में 2009 में तत्कालीन मेरठ की जिलाधिकारी श्रीमती कामनी चौहान रतन और मुख्यविकास अधिकारी एन एस राजू के निर्देशन में संस्था का पंजीकरण कराया गया, जिसका संरक्षण भौतिशास्त्री प्रोफ़ेसर एस पी खरे जी को बनाया गया।


उन्होंने 1991 में एन ए एस इन्टर कालेज में विज्ञान अध्यापन का कार्य शुरू  कर दिया था | वे
शुरुआती दौर से ही राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस का हिस्सा रहे |1984 से अब तक लगभग 12 लाख बाल वैज्ञानिकों तक आप पहुंचे हैं।  फिर शासन की जिला विज्ञान क्लब मेरठ के समन्वयक की जिम्मेदारी भी इनपर अा गई। जिसके चलते युवाओं, महिलाओं और किसानों में विज्ञान की समझ की जागरूकता अभियान में तेजी आयी।103 स्कूलों की प्रतिभागिता के साथ मेरठ जनपद देश का सबसे बड़ा आयोजन करने वाला जिला भी बना। वर्तमान में दीपक सर राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस, उत्तर प्रदेश, के राज्य शैक्षिक समन्वयक हैै |


दीपक शर्मा सर ने जो भी काम किया उसमे अपना शत प्रतिशत योगदान दिया और मन से काम किया यही कारण रहा की 2001 में एनसीसी के कोर्स में देश के एनसीसी अधिकारियों के बीच फर्स्ट रैंक व फर्स्ट पोजिशन प्राप्त की । बच्चो मै हमेशा लोकप्रिय रहे दीपक शर्मा ने बच्चो के साथ मिलकर प्रथ्वी की परिधि मापने का प्रयोग प्रारंभ किया जो बाद में देश भर में लोकप्रिय हुआ। 2004 में शुक्र पारगमन के दौरान एन ए एस इन्टर कॉलेज के मैदान से  विश्व का इतिहास भी बना जब वैज्ञानिक प्रोफेसर एस पी खरे और तमिनाडु के टी रामालिंगम के साथ मिलकर प्रथ्वी से सूरज की दूरी मापी गई। इसी कारण मेरठ में एन ए एस इन्टर कॉलेज खगोलीय गतिविधियों के लिए जाने जाना लगा जिसका लाभ पूरे जनपद को हुआ।


2009 में शासन के सहयोग से विज्ञान केंद्र के लिए गरीब व मलिन बस्तियों के बच्चो के बीच काम करने के लिए बिजली बंबा बायपास पर जगह प्राप्त की जहां समय समय पर अच्छे व सफल कार्यक्रम होते रहे है लेकिन लगातार चोरी की घटनाओं ने काफ़ी नुकसान पहुंचाया हैं। इसी बीच में दीपक शर्मा सर ने गणित और विज्ञान के सूत्रों को संगीत बद्घ कराया। अंधविश्वास को दूर करना, खाद्य पदार्थो में मिलावट की जांच करना, दैनिक जीवन में विज्ञान, खगोलीय गतिविधि जैसे प्रोग्राम इतने लोकप्रिय हो गए कि दीपक शर्मा सर के ऊपर "बच के रहना रेे बाबा" के नाम से 74 एपिसोड का धारावाहिक महुआ टीवी चैनल द्वारा बनाया गया जिसकी शूटिंग एन ए एस इन्टर कालेज में ही की गई थी।


दीपक शर्मा जी एशिया के प्रथम अध्यापक हैं जिन्हें यूरोपियन साइंस मीट (फ़्रांस ) में आमंत्रित किया गया। विज्ञान संचार की सभी विधाओं का प्रयोग करते हुए बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए विज्ञान पत्रिका "विज्ञान आओ करके सीखे" के साथ ही विज्ञान चैनल की शुरआत भी 
कर दी। उन्होंने अपने प्रयास से देश भर में 200 से अधिक विज्ञान संचारकों को तैयार किया।
कक्षा में विज्ञान और गणित को पढ़ाते समय की वेडिओ भी समय समय पर तैयार करते रहे हैं। विज्ञान आधारित विश्व का सबसे पहला रियलिटी शो " विज्ञान घर"  के विज्ञान गुरु दीपक शर्मा ही थे। देश का पहला विज्ञान चैनल भी दीपक शर्मा जी बेहद कम संसाधन में चला रहे हैं। प्रथ्वी की परिधि नापने का प्रयोग व एनालेमा सन डायल देश भर के बच्चो मै सबसे जायदा लोकप्रिय रहे हैं।


 


ढेरों सम्मान के साथ ही राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी प्रयागराज द्वारा "राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षक"  सम्मान 2001 में दिया जा चुका हैं। दीपक सर बच्चो में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, जिज्ञासा व सृजनशीलता विकसित करने का काम करते हैं।इस दौरान बच्चों में वैज्ञानिक समझ विकसित करने के लिए विज्ञान संचार की सभी विधाओं का प्रयोग किया। विज्ञान के प्रयोगों को जीवन के साथ जोड़कर मजेदार तरीके से समझाना और बालको के साथ नई नई समस्याओं का समाधान निकालना उन्हें अच्छा लगता है |  इस सफर में आई सारीचुनौतियों का सामना उन्होंने निर्भीकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए करा। यहाँ तक का सफर आसान नहीं था मगर उनके परिवार, सुभचिंतको एवं प्रगति विज्ञान संस्था के पुरे परिवार के सहयोग से वे आज विज्ञान की दुनिया में अपना परचम लेहरवा पाय हैं और ईश्वर की कृपा से वे हर पल हर वर्ष ही नयी बुलंदियों को छुए और विज्ञान को जनमानस तक पहुंचते रहे। दीपक सर ने विज्ञान का जो दीपक मेरठ में जलाया वह आज सूर्य के समान चमक रहा हैं और वे इसी प्रकार हमेशा ही अंधकारो को मिटाते रहेगें|


जय विज्ञान !!!! जय अनुसन्धान !!!!!!