परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम में माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने बच्चों को जो टिप्स बताए वो बेहद महतवपूर्ण हैै ।
: किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए संकल्प लीजिए :- कभी-कभी हमें लगता है कि हम यह कार्य पूरा नहीं कर पाएंगे और यदि हम संकल्प ले कि हमें यह कार्य किसी भी परिस्थिति में पूर्ण करना है तो मानिया ऐसी कोई भी ताकत नहीं है जो आपको रोक सके। और कितना भी कठिन से कठिन कार्य क्यों ना हो आप उसे बहुत आसानी से पूरा कर सकते हैं।
परीक्षा जिंदगी नहीं मात्र जीवन का पड़ाव है :- परीक्षा के अंक ही हमारे भविष्य का निर्धारण नहीं करते। परीक्षा एवं परीक्षा के अंक जीवन का एक पड़ाव है जिसे हमें पार करना होता है। शिक्षा के क्षेत्र के अलावा और बहुत से क्षेत्र हैं जिसमें अपने भविष्य को सुंदर बनाया जा सकता है। आवश्यकता है तो बस प्रयास करने की।
: विफलता से सीख, सफलता की और बढे़ :- हम जैसे कभी कभी कोई काम करने में विफल हो जाते हैं। तो हम यह सोचने लगता है कि हम आगे यह काम नहीं कर सकते। परन्तु कहते है ना " हार के जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं " यदि हम किसी कार्य में विफल हो भी गए तो निराश होने की बजाएं उस कार्य को पुनः पूर्ण करने का पुनः प्रयास करना चाहिए।
टेक्नोलॉजी को बाधा न बनने दें, संतुलन बनाए रखना आवश्यक :- आजकल शिक्षा क्षेत्र में देखा जाए तो टेक्नोलॉजी बहुत एडवांस हो गई है। इंटरनेट के माध्यम से कठिन से कठिन सवाल को समझने में बहुत सहायता मिलती है। लेकिन इसको खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए क्योंकि हम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बहुत ज्यादा मात्रा में करते है। जिसके कारण हम उसके आदी हो जाते हैं और उसे खुद पर हावी होने देते हैं।
: जीवन में एक्स्ट्रा curricalar एक्टिविटीज को भी महत्व दीजिए :- बहुत से बच्ची परीक्षा के डर से अपने आप को एक कमरे में बंद करके पूरा दिन पूरी रात पढ़ते रहते हैं। जैसे हम काम करते करते थक जाते हैं बिल्कुल उसी प्रकार हमारा मस्तिष्क भी थक जाता है एक ही काम को बार-बार करते करते। इसीलिए पढ़ाई के साथ साथ अन्य एक्टिविटीज करनी भी जरूरी है जैसे :- थोड़ी देर खेलना, घरवालों के साथ समय बिताना, और भी अन्य काम जो हमें करना अच्छा लगता है, जिस कार्य को कर के मन को खुशी मिलती हो वो कार्य करना चाहिए। ऐसा करने से हमारे मस्तिष्क में जो एक कार्य को करते-करते तनाव वाली स्थिति पैदा होने लगती है वो पैदा होने से पहले ही समाप्त हो जाएगी और हम फ्री माइंड से अपनी पढ़ाई को अच्छे से पूरा कर सकते हैं।
: शब्दावली को करें मजबूत, टेक्नोलॉजी का करें सही उपयोग :- हमें अपनी शब्दावली को भी मजबूत करने की आवश्यकता है और ऐसा करने के लिए टेक्नोलोजी बहुत ही अच्छा साधन है। आजकल के स्मार्टफोन में हर भाषा की डिक्शनरी उपलब्ध होती है। यदि हम सोच लें कि हमें प्रतिदिन 10 नए शब्दों को याद करना है तो धीरे-धीरे अपने आप ही हमारी शब्दावली काफी हद तक सुधार जाएगी।
: अपने बच्चों की कैपेबिलिटी को समझें :- हर बच्चे की कार्य करने की अपनी अपनी क्षमता होती है। जैसे- कुछ बच्चे होते हैं जो कम समय में ज्यादा पढ़ाई कर लेते हैं और कुछ बच्चे होते हैं जो पूरा दिन पढ़ने के बाद भी बहुत कम पढ़ाई कर पाते है। तो अभिभावकों एवं अध्यापक को भी अपने बच्चे की क्षमता को ध्यान में रखते हुए ही उन्हें कार्य करने के लिए प्रेरित करना आवश्यक है।
: बच्चों को प्रोत्साहित करना आवश्यक :- सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि बच्चे की रुचि किस क्षेत्र में ज्यादा है। जरूरी नहीं यदि बच्चा पढ़ाई में अच्छा नहीं है तो वह आगे कुछ नहीं कर सकता शिक्षा के अलावा बहुत से क्षेत्र हैं जिसके द्वारा जीवन को आगे बढ़ाया जा सकता है। कभी भी बच्चे को किसी भी कार्य को करने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए। बच्चा जो करना चाहता है उसे उसमें प्रोत्साहित करना चाहिए। विज्ञान का नियम है "हम जिस किसी भी वस्तु पर ज्यादा दबाव डालते हैं तो अंत में वह समाप्त या नष्ट हो जाती है" ठीक उसी प्रकार यदि हम बच्चे पर ज्यादा दबाव डालेंगे तो वह कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाएगा तथा इसके परिणाम बहुत घातक भी हो सकते हैं। अतः बच्चे पर दवा ना डालकर उसे प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
: सुबह का समय पढ़ाई के लिए माना जाता है अनुकूल :- पूरे दिन भर कार्य करने के बाद हमारे मस्तिष्क में बहुत सारी बातें एकत्रित हो जाती है और उसके बाद हम रात को सोने के बाद जब सुबह उठते हैं तो हमारा मस्तिष्क एकदम तरोताजा महसूस करता है और उस समय हम जो भी याद करते हैं वह हमारे मस्तिष्क में फॉरएवर सेव हो जाता है। इसीलिए कहां जाता है सुबह का समय पढ़ाई के लिए काफी अच्छा होता है।
: अपनी क्षमता के हिसाब से पढ़ाई का समय चुनें :- हमें अपनी क्षमता के हिसाब से ही पढ़ाई करनी चाहिए बहुत से बच्चों को रात को पढ़ने की आदत होती है, कुछ बच्चों को दिन में पढ़ने की आदत होती है सबको अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से पढ़ाई करनी चाहिए। क्योंकि यदि हम अपनी क्षमता के खिलाफ जाकर कार्य करते हैं तो वह कार्य हमेशा खराब हो जाता है इसीलिए उपयुक्त यही है की अपनी क्षमता को ध्यान में रखते हुए ही कार्य करा जाए।