सुरज पर फिर से दिखने लगे धब्बे- शुरू हो गई सोलर साइकिल

सुरज पर फिर से दिखने लगे धब्बे- शुरू हो गई सोलर साइकिल



अगली 11 साल की सोलर साइकिल एक बार फिर से शुरू हो गई है। हालाकि मार्च में ही सोहो और होलियोसेसमिक ने अपने डाटा में महसुस किया था पर अब इस सौर साईकिल के सन स्पाट दिखने शुरू हो गये है। आज भी अन्तरिक्ष से सुरज पर नजर रख रहे सोहो ने एक फोटो भी जारी की है।वहीं मेरठ से भी इसे देखा गया । हालाकि यह धब्बा शौकिया जानकारी रखने वालो के लिए बहुत छोटा हैं परन्तु सन स्पाट के आने से सुरज और पृथ्वी  में आने वाले बदलाव बहुत ही प्रभावशाली होने वाले हैं। 
सन स्पाट को सबसे पहले 1609 में गैलिलियो ने देखा फिर बाद में लगभग ढाई सौ साल बाद 1843 में  इसकी सोलर साईकिल समझ आयी। खगोल के जानकारों ने पाया कि यह सोलर साईकिल 11 साल कि होती हैं इसमें 1500 किमी से लेकर 50000 किमी तक के व्यास वाले सन स्पाट बनते हैं अगर पृथ्वी के आकर से तुलना करे तो पृथ्वी का व्यास 12742 किमी हैं यह सूरज से 109 गुना छोटा हैं 



दूनिया के पहले विज्ञान आधारित रियलिटि शो विज्ञान घर का निशुल्क पंजिकरण आनलाइन प्रारम्भ किया जा रहा है।   विज्ञान घर का सदस्य बनने के लिए यहा पंजीकरण करे।


https://forms.gle/wkfQe74vtx4w5Wgw7



सन स्पाट - कैसे बनते हैं 
सुरज में लगातार गतिज उर्जा चुम्बकीय उर्जा में बदलती रहती हैं और तापमान की अधिकता के चलते चुम्बकीय बन्ध बनते रहते है।सुरज के जिस हिस्से का तापमान कम हो जाता हैं वही ंपर चुम्बकीय बन्ध खुल जाता ह ैंजिससे भरी मात्रा में प्लाज्मा अन्तरिक्ष में फैल जाता हैं प्लाज्मा के बाहर आने से सूरज पर जो जगह खाली होती हैं वह स्थान पृथ्वी से देखने पर काला धब्बा से नजर आता हैं उसे सन् स्पाट कहते है। सन् स्पाट बनने की प्रक्रिया 11 साल की एक सोलर साईकिल हैं जिसमें सूरज के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव भी बदलते रहते हैं जिससे सूरज की अपनी गति में भी बदलाव आता है। जो अपने सौर परिवार में आने वाले सभी ग्रहो खासकर पृथ्वी पर प्रभाव डालता हैं। होलाकि अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर साुमूहिक रूप से एक स्पेस क््राफट सोहो 1996 से सूरज के चक्कर लगा रहा हैं और उस पर लगातार नजर रखे हुये हैं
और जब कभी ये प्लाज्मा अन्तरिक्ष में प्थ्वी की और आता हैें तब यह प्थ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रभावित करता हैं इसे उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर रहने वाले लोग इसे हरे रंग के औरा के रूप में देखते है। यह औरा इतना खतरनाक तक होता हैं कि बिजली सिस्टम को नष्ट कर देता है। इससे बचनेके लिए अमेरिका में कई बार ब्लैक आउट हो चूका हैं। इस दौरन स्पेस स्टेशन पर रह रहे अन्तरिक्ष यात्री बाहर नही निकलते हैं ।
भारत भी सुरज के अध्धयन के लिए पहला अंतरिक्ष यान आदित्य एल1 को इसी वर्ष लांन्च करने जा रहा हैं  यह एल 1 बिन्दु पर ही स्थापित किया जायेगा।
जो पृथ्वी से 16 लाख किमी दूर स्थित है।