पक्षियों के बारे में है....... इसमें जितने भी विचार और तरीके लिखे हुए हैं सब रिसर्च के मुताबिक हैं 😎😎
एक मिट्टी के बर्तन में पानी, एक प्लेट में दाना! इस गर्मी में चिड़ियों को दें थोड़ी सी छांव और प्यार उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में गर्मी का प्रकोप बरस रहा है. इस गर्मी से सिर्फ़ इंसान ही नहीं, बल्कि नन्हें-नन्हें पक्षी भी परेशान हैं. हर साल गर्मी के मौसम में न जाने कितने पक्षी प्यास और Heatstroke का शिकार हो कर जान दे देते हैं. हम यदि एक छोटी-सी कोशिश करें, थोड़ी-सी मानवता दिखाएं और अपने घर-ऑफ़िस में आने वाले पक्षियों के लिए पानी और आश्रय का प्रबन्ध करें, तो गर्मी के कारण होने वाली पक्षियों की मौत में काफ़ी कमी आ सकती है.
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अपने घर की बालकनी और आंगन में आप पक्षियों के लिए पानी रख सकते हैं. ध्यान रहे कि प्लास्टिक या स्टील के बर्तन में पानी न रखें. धूप में इन बर्तनों का पानी बहुत गर्म हो जाता है. मिट्टी के बर्तन में पानी रखना सबसे अच्छा होता है. इन बर्तनों की नियमित सफ़ाई करते रहें, ताकि पक्षी रोगों से दूर रहें. आप अपने ऑफ़िस में भी अपने सहयोगियों के साथ मिल कर वहां पानी रख सकते हैं, जहां पक्षी आते हों
अगर आपके घर के आस-पास पक्षी कम आते हैं, तो आप उन्हें बुलाने की व्यवस्था कर सकते हैं. पक्षी बहते पानी की आवाज़ से आकर्षित होते हैं. इससे वो न सिर्फ़ आकर्षित होते हैं, बल्कि बहते पानी में नहाने से उन्हें गर्मी से राहत मिलती है. ऐसा करने से मच्छरों और बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों से भी उनका बचाव होता है. उनके नहाने के लिए बेसिन की व्यवस्था करते समय ध्यान रखना चाहिए कि वो न तो ज़्यादा गहरे हों और न ज़्यादा उथले. डेढ़ इंच की गहराई आमतौर पर सही मानी जाती है. उनके नहाने के लिए ठहरा हुआ पानी रख रहे हों, तो उसमें समय-समय पर बर्फ़ डालना न भूलें.
पक्षियों के लिए छाया की व्यवस्था करें
पक्षियों की प्यास बुझाने के साथ ये भी ज़रूरी है कि उन्हें धूप से भी बचाया जाए. इसके लिए हम उनके लिए छायादार आश्रय-स्थल बना कर बालकनी में या बगीचे में पेड़ों की शाखाओं पर टांग सकते हैं. पक्षियों के लिए गत्ते के घर सबसे अच्छे होते हैं. इनके लिए आप जूतों के डिब्बे आसानी से प्रयोग में ला सकते हैं. पक्षियों के लिए आश्रय-स्थल बनाते वक़्त ध्यान रखें कि उसमें हवा आसानी से आती-जाती हो. इन्हें ऊंचाई पर टांगे, ताकि बिल्ली और दूसरे जानवरों से वो सुरक्षित रह सकें.
पक्षियों को खाना दें
वैसे तो पक्षी बहुत मेहनती होते हैं और अपने लिए दाने की व्यवस्था खुद कर लेते हैं, लेकिन गर्मियों में ज़रूरी है कि उन्हें कम-से-कम उड़ना पड़े. वो जितना उड़ेंगे, उन्हें उतनी ही पानी की ज़रूरत होगी और Heatstroke का ख़तरा भी उतना ही होगा. पानी के साथ अगर हम उनके लिए खाना भी रख देंगे, तो उन्हें ज़्यादा भटकना नहीं पड़ेगा. उनके लिए बनाए गए घर में उनके लिए दाना और पानी रखा जा सकता है. गर्मियों में उनके लिए सूरजमुखी के बीज, फल और रस अच्छा भोजन माने जाते हैं. गर्मियों में सही पोषण पक्षियों के Metabolism को नियंत्रित रखता है और गर्मियों से निपटने में उनकी मदद करता है.
प्रकृति ने पक्षियों के शरीर को इस तरह बनाया है कि वो गर्मियों का सामना कर सकें. पक्षियों को पसीना नहीं आता, उनके चेहरे पर नग्न त्वचा होती है, उनका श्वसन तंत्र भी तुलनात्मक रूप से तेज़ होता है. पक्षियों की कुछ प्रजातियां अपने रक्त प्रवाह को भी नियंत्रित कर सकती हैं, जिससे शरीर को ठंडा रखने में मदद मिलती है. लेकिन फिर भी ये सब काफ़ी नहीं है और गर्मियों से लड़ने के लिए पक्षियों को हमारी मदद की ज़रूरत होती है.
एक और अपील है आप सभी से की लॉक डाउन के चलते सभी अपने-अपने घरों में है इंटरनेट और मोबाइल का ज्यादा उपयोग कर रहे हैं कृपया करके इनका बहुत कम ही उपयोग करें जरूरत पड़ने में क्योंकि पक्षियों की मौत का सबसे बड़ा कारण है विवरण में पढ़िए
मोबाइल रेडिएशन कितना खतरनाक?
हर मोबाइल और टावर से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (ईएमआर) निकलता है, लेकिन सवाल ये है कि क्या वो कितना खतरनाक होता है? 2011 में पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से एक रिपोर्ट 'A possible impact of communication tower on wildlife birds and bees' जारी की गई थी. इसके अनुसार पक्षियों की संख्या घटने के पीछे मोबाइल रेडिएशन की भी एक बड़ी भूमिका है. इतना ही नहीं, ईएमआर की वजह से मधुमक्खियों में अंडे देने की क्षमता में भी कमी पाई गई.
इस रिपोर्ट को तैयार करने वालों में से एक Nature Forever Society के प्रेसिडेंट मोहम्मद दिलावर का कहना है कि ईएमआर को हमेशा ही नुकसानदायक बताया जाता है. चीन और स्विटजरलैंड जैसे देशों में ईएमआर को लेकर अलग नियम हैं, जबकि भारत के नियम अलग हैं. स्टडीज से यह साफ हो चुका है कि जब किसी इलाके में मोबाइल और मोबाइल टावर बढ़े हैं, तो वहां गौरैया में कमी आई है. हालांकि, भारत में इस टॉपिक पर सही से रिसर्च की ही नहीं गई है. उन्होंने बताया कि 2011 की रिपोर्ट में भी उन्होंने कहा था कि ईएमआर गौरैया की संख्या में कमी की एक वजह है, ना कि सिर्फ यही एक वजह है. इसके अलावा खाना और घोंसला बनाने के लिए जगह नहीं मिल पाना भी इसकी वजहों में शामिल है.
एक ऑर्रनिथोलोजिस्ट मारुति चितामपल्ली ने सबसे पहले रेडिएशन के खिलाफ आवाज उठाई थी. उनके अनुसार रेडिएशन से पक्षियों पर बुरा असर पड़ता है और साथ ही प्रवासी पक्षियों को उड़ने में दिक्कतें भी होती हैं.
पंजाब के Centre for Environment and Vocational Studies को घरों में घूमने वाली गौरैया के 50 अंडों को करीब 5-10 मिनट के लिए ईएमआर में रखा गया था. इसके बाद पाया गया कि सभी अंडों को ईएमआर की वजह से नुकसान पहुंचा.
प्रकृति से प्यार करने वाले श्रीकांत देशपांडे कहते हैं कि मोबाइल टावर लगाने में नियमों का पालन नहीं किया गया. टेलिकॉम कंपनियां मोबाइल टावर की फ्रीक्वेंसी बढ़ा देती हैं, ताकि कम टावर लगाने पड़ें, जिसकी वजह से पक्षियों पर बुरा असर पड़ रहा है.
असली दिक्कत मोबाइल टावर हैं
अगर बात की जाए रेडिएशन से होने वाली दिक्कतों की तो असली दिक्कत तो मोबाइल सिग्नल के लिए लगे टावरों से हो रही है. मोबाइल फोन पर तो रेडिएशन चेक भी किया जा सकता है, लेकिन टावरों का क्या? मोबाइल फोन तो लोगों के हाथ में हैं, जिसका रेडिएशन चेक हो सकता है, लेकिन टावरों से निकलने वाला रेडिएशन खतरनाक स्तर से कम है या अधिक, इसका पता लगाना सरकार की जिम्मेदारी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)के अनुसार मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियो तरंगे इतनी ताकवर नहीं होती हैं, जिससे शरीर को या फिर डीएनए को कोई भी नुकसान पहुंचे. हालांकि, WHO भी लंबी अवधि में शरीर पर पड़ने वाले असर के बारे में नहीं पता लगा सका है, क्योंकि अभी मोबाइल फोन के इस्तेमाल को लेकर बहुत अधिक साल नहीं बीते हैं. ऐसे में डेटा की ही कमी है.
मोबाइल फोन से निकलने वाला रेडिएशन आपकी सेहत के लिए खतरनाक है या नहीं यह मोबाइल की SAR यानी स्पेसिफिक एबजॉर्प्शन रेट पर निर्भर करता है. 1.6 W/Kg तक की एसएआर वैल्यू होने से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इससे अधिक नहीं होनी चाहिए. हालांकि, आजकल के मोबाइल फोन में 0.3 W/Kg - 0.6 W/Kg की एसएआर वैल्यू ही होती है. अगर आपके पास एंड्रॉइड मोबाइल है तो उसकी एसएआर वैल्यू आप *#07# डायल कर के चेक भी कर सकते हैं.
भारत में अभी तक घरों में पाई जाने वाली गौरैया की संख्या में आ रही कमी का सही कारण पता नहीं है, क्योंकि भारत में ऐसी कोई रिसर्च नहीं की गई है. एक्सपर्स मानते हैं कि 2.0 फिल्म के जरिए एक सही मुद्दे को बहस का विषय बनाया गया है, लेकिन इस पर और अधिक रिसर्च की जरूरत है. वहीं दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर इस फिल्म को लेकर दो पक्ष दिखाई दे रहे हैं. एक वो, जो फिल्म द्वारा एक अहम मुद्दा उठाने को सही बता रहे हैं, जबकि एक दूसरा पक्ष वो है जो इस फिल्म में दिखाई गई बातों से सहमत नहीं है. 2.0 फिल्म में बेशक थोड़ा बढ़ा-चढ़ा कर बातें दिखाई गई हैं, लेकिन ये ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर अभी नहीं संभला गया तो भविष्य में मोबाइल रेडिएशन से होने वाली दिक्कतें सामने जरूर आएंगी.