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दुनिया में जाने अनजाने में बहुत सारे चमत्कारी प्रयोग हो गए।1953 में मिलर का प्रयोग जिसने जीवो की उत्पत्ति को समझाया था ठीक ऐसा ही कुछ यहां मेरठ में एक प्रयोग जो अनजाने में हो गया और एक बार फिर से सिद्ध कर दिया कि जीव कैसे उत्पन्न होते हैं। 21 मार्च को जनता कर्फ्यू और फिर लगातार चल रहे कोरोना के खिलाफ युद्ध के कारण हमारे विज्ञान चैनल ऑफिस में 25 दिन तक एक बर्तन में बनी हुई चाय रखी रह गई थी और फिर जो उसमें मिला वो रोमांचकारी था।
हम सभी के अंदर बालपन से ही वैज्ञानिक छुपा होता है,बस जरूरत है तो हमें अपने आपको पहचानने की ,और एक ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण स्थापित करने की, जो हमें अपने आसपास हो रही घटना को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने में हमारी सहायता करें अर्थात उस घटना के पीछे क्या कारण था? .क्या वजह रही?.क्या समाधान हो सकते हैं? इस घटना के क्या परिणाम हो सकते हैं ? जैसे तमाम प्रशन हमारे जेहन में स्थापित होने लगे तो एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण स्थापित होता है .इतिहास गवाह है बड़ी से बड़ी खोज के पीछे ऐसे ही प्रसन्न करने वाले वैज्ञानिकों का हाथ है चाहे न्यूटन द्वारा पेड़ से गिरते हुए सेब को देखकर गुरुत्वाकर्षण बल को दुनिया के सामने लाना हो.चलो इसी वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण मेरठ में स्थित प्रगति विज्ञान संस्था के ऑफिस में घटित होने वाली एक रोचक और मजेदार घटना के बारे में आपको बताते हैं, लगभग आज से 25 दिन पहले भूल वंश चाय का भगोना लोक डाउन के चलते हमारी पहुंच से दूर रह गया.जिसमें थोड़ी चाय भी थी.लगभग 25 दिन बाद जब हमने आकर देखा तो उसमें कीड़े रेंग रहे थे और एक तीखी दुर्गंध भी आ रही थी ,जिसे समझने के लिए हमें लुइस पाश्चर के शक्कर और ईस्ट के प्रयोग से प्राप्त परिणामों को समझना होगा.जिस प्रकार पाश्चर ने शक्कर और ईस्ट का घोल उबालकर उसमें उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट कर दिया था उसी प्रकार जब हमने चाय को उबाला तो उसमें उपस्थित जीवाणु नष्ट हो गए लेकिन जैसे-जैसे उस चाय को रखे काफी समय होता गया, तो उसमें वायुमंडल में उपस्थित धूल के कण और सूक्ष्म जीवाणु चिपक गए, जिन्होंने चाय में भली-भांति कार्बनिक पदार्थों की भूमिका निभाई इस संपूर्ण प्रक्रिया में सरल कार्बनिक तथा अकार्बनिक यौगिकों से जटिल यौगिको तथा अमीनो अम्ल का संश्लेषण हुआ, अमीनो अम्ल के संश्लेषण से लंबी व जटिल पॉलिपेप्टाइड श्रंखला के बनने से प्रोटीन का निर्माण हुआ तथा चाय में उपस्थित शर्करा से मिलकर न्यूक्लिक एसिड का निर्माण किया.जीवन की उत्पत्ति में न्यूक्लिक अम्ल बनना एक महत्वपूर्ण पद माना जाता हैं ,जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया इसमें जीवाणुओं ने अपना बसेरा बना लिया जो समय के साथ साथ दुर्गंध का कारण भी बने, अतः हमारे प्रयोग ने स्वत जनन वाद को गलत सिद्ध किया तथा जीवात् जनन वाद की पुष्टि की !