अदृश्य दुश्मन


स्वास्तिक साहनी


नमन...


कभी ख़्वाब में भी न सोचा था,
युद्ध ऐसा छिड़ जाएगा कि,
दुश्मन तो होगा पर उसका,
अस्तित्व समझ न आएगा।
अब तक जिन दुश्मनों से, 
पड़ता रहा पाला हमारा,
जाबांज शेर सिपाहियों द्वारा,
सदा ही हुआ संहार उनका।
इस बार जो दुश्मन हमें,
घेर कर है बैठ गया,
थोड़ा संकट गहरा है,
चूँकि रूप उसका नज़र नहीं आया है।
दोस्तों! हमारा भी हौंसला देखो,
उन दिनों वर्दीधारी सिपाही ही,
शत्रु से लोहा लेता था,
आज बच्चा-बूढ़ा-जवान हर कोई 
करने चला है इस,
अद्रशय दुश्मन का सामना।
हर कोई सीमाओं में रहकर,
कर रहा एक तीर से दो निशाने,
एक तीर, सेवा का हथियार,
दूजा, फ़र्ज की मिसाल।
हम करते हैं नमन सब मिलकर,
चिकित्सकों को
जो दिन हो या रात, 
सुबह हो या शाम,
तत्परता से कर रहे हैं काम।
हम करते है नमन सब मिलकर,
समाजसेवियों को,
जो अपनी परवाह किए बिना, 
औरों की भूख है मिटा रहे,
कर रहे जागरूक सभी को,
हौंसला उनका बढ़ा रहे।
हम करते है नमन सब मिलकर,
वेंडर्स को
जो बिन माने कोई भी हार,
पंहुचा रहे हमे सुविधाएं तमाम।
हम करते है नमन सब मिलकर,
अधिकारियों, नेताओं, कर्मचारियों को,
और ऐसे ही प्रत्येक सैनिक को,
जो न होकर सैनिक भी 
निकल पड़ा है जंग पर,
हासिल कराने हर अपने को,
उसके हर अपने का साथ।


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