वो एक अनजाना चेहरा था,
अनदेखा, अनचीन्हा ।
चेहरा भी कहां?
अति सूक्ष्म से सूक्ष्मतम व्यक्तित्व था उसका,
मायावी अस्तित्व था उसका ।
एक से असंख्य, असंख्य से असंख्य हो जाता था वो
पलक झपकते।
इंसान और इंसानियत का
दुश्मन था वो,
इंसानों को एक साथ हंसते-खेलते
खुशियां मनाते
देखना उसे रास नहीं आता था।
शैतानी चाल चली उसने
घुसकर इंसानों की देह में
रगों में,सांसों,
छीनने लगा उनकी
जीवन शक्ति,
बेदम,बेबस होने लगे लोग,
कुछ की खत्म कर दी इहलीला।
लाशों के अंबार पर बैठकर
कहकहे लगाने लगा वो,
मोगांबो खुश हुआ।
उसने एक देह से दूसरी देह में,
एक सिलसिला बनाया,
एक शृंखला बनायी,
इंसानी इस्तेमाल की चीजों पर.
घात लगाकर बैठ गया वो,
तुम छुओ,मैं धावा बोलूं तुम्हारी देह पर।
हमें तोड़ना होगा इस शृंखला को,करना होगा उसे बेदम,
तोड़ने होंगे उसके नापाक इरादे, छीननी होंगी उसकी सांसें,
बस एक हथियार है हमारे पास
संकल्प और संयम के साथ,
धोना होगा बार बार हाथ,
करना होगा एकांतवास,
तब हमारी नहीं, टूटेगी उसकी सांस,
धरा पर बना रहेगा, आशा और
विश्वास..।।।
-----जगदीप सक्सेना
संकल्प और संयम के साथ, धोना होगा बार बार हाथ, करना होगा एकांतवास