मुझे अपनी स्मृति में ज्ञात नहीं कि कोरोना जैसी स्थिति कभी आई हो। हो सकता है, हमारे अग्रजों ने कोई दौर देखा हो। सुना है, प्लेग फैला था। लेकिन आज और उस दौर में अंतर है। आज विकास, समाज और व्यापार जगत कहीं का कहीं पहुँच गया है। अपने पत्रकारिता जीवन मे मैंने ऐसे अवसर नहीं देखे जब सब कुछ पंगु हो गया हो। हमारी सावधानी सर्वप्रथम है। असावधानी न बरतें। यही निवेदन है।
रोटी मुश्किल हो गयी, ठप्प हुये व्यापार
कोरोना के वार से, कांपे तन बीमार।।
शहर-शहर बीमार हैं, बड़े-बड़ों का रोग
राम राम अब कर रहे, करके उल्टे भोग
कोरोना के खौफ से,बुरा हुआ है हाल,
घूम रहे बाजार में, बनके सब बेताल।।
सूर्यकांत