साँप चमगादड़ का जेनेटिक कोड कोरोना वायरस में मिला है.. साँप भोजन के अंतिम विकल्प के रूप में खाया जा सकता है, पर चीन और थाईलैंड वालों ने इसको फैशन बना दिया था.. वही स्टाइल आजकल सी फ़ूड में भी चलती है.. मदिरा के बाद वीयर्ड के नाम पे कुछ भी चबा जाना फैशन है.. केकड़ा, मेढ़क, घोंघा, साँप आदि आज भी कुछ एक प्रजातियों के नित्य भोजन का हिस्सा है.. लेकिन इसका मतलब ये कत्तई नहीं कि हर चपटी नाक वाले व्यक्ति को ये सूट ही करेगा.. भोजन इंसान की जेनेटिक मेमोरी के अनुसार ही होना चाहिए.. आप की पिछली दस पीढ़ियाँ शाकाहारी हैं और आप तंदूर चिकन के दीवाने हो चुके हैं तो ब्लड प्रेशर और फैटी लीवर से आप को कोई नहीं बचा सकता.. उसी प्रकार व्यक्ति का शरीर अपने बचपन मे खाये हुए भोजन के प्रति सर्वश्रेष्ठ प्रतिक्रिया देता है.. उदाहरण के लिए जब पाचन तंत्र विकसित हो रहा था तो आप गाय का दूध और बाजरे की रोटियाँ, दाल बाटी चूरमा वाले माल को पीस रहे थे.. फिर एकाएक आप बीटेक हो गए और स्पेनिश चाइनीज़ तुर्किश खाना शुरू कर दिए तो आपका हिंदी मीडियम पेट इतनी भाषाओं का भोजन कैसे पचा पायेगा.. आपके बचपन का कोई भी भोजन रसोई में बने, जैसे मान लीजिए मटर का निमोना.. आपकी नाक, आपकी जीभ सब खाने के टेबल पे आने से पहले ही रिस्पॉन्स करने लगते हैं.. यही पाचन तंत्र की जेनेटिक मेमोरी है.. इसी प्रकार स्थान की भी एक जेनेटिक मेमोरी होती है.. राजस्थानी आदमी साउथ इंडिया में भी सांगरी खोजता है, साउथ वाला कानपुर में उत्तपम खाता है.. हवा पानी और भोजन शरीर के मूलभूत अवयव हैं.. इस दौर के हवा पानी का हम बहुत कुछ नहीं बदल सकते.. चाह के भी मैं अपने गाँव मे पूरा जीवन बिता नहीं सकता, लेकिन जहाँ भी रहूँ नए भात के साथ चने की दाल वाला सगपैता तो खा ही सकता हूँ.. कन्याकुमारी में भी लिट्टी चोखा तो लगा ही सकता हूँ.......
Dr Yogesh Dixit: नेपाल से सटे जिलो में कोरोनावायरस का खतरा अधिक है सभी से निवेदन है सतर्क रहें और अपना ध्यान रखें.
नेपाल में इस वायरस से संक्रमित कई लोगों को चिन्हित किया जा चुका है यद्यपि भारत में अभी केरल लौटे दो व्यक्तियों में कोरोना वायरस की पहचान की गई है