क्रोध का क्रान्तिक तापमान

विचारो का गुब्बार जब क्रांतिक तापमान, 
के बहुत ऊपर उफान लेने लगता है, 
तब जन्म होता है, 
क्रोध का।
जैसे पानी को ताप मिलते मिलते, 
वो भाप मे तब्दील होता है। 
जिसको संघनन होकर ठंडा होने मे, 
काफी वक्त लगता है,
और इसके साथ  ही अवस्था मे भी, 
परिवर्तन आता है। 
इसी तरह व्यक्ति का क्रोध भी जब, 
शांत होता है, 
वक्त के साथ परिस्थिति,
और शायद रिश्तो की अवस्था, 
मे भी परिवर्तन आ जाता है! 
इसीलिए कहा गया है, 
"क्रोध रिश्तो मे विनाश का एकमात्र कारक है! "