बायोनिक हाथ
जब आप सुबह-सुबह अपने शोरगुल अलार्म से अपनी आँखें खोलते हैं, तो आप बस अपने अलार्म को अपने हाथों से बंद कर देते हैं, और अचानक ही अपने हाथों का सहारा लेकर आप अपने कार्यालय, स्कूल, कॉलेज, आदि के लिए तैयार होने के लिए अपना बिस्तर छोड़ देते हैं|
आप अपने हाथो से अपना ब्रश, वाशरूम, शावर, और यहाँ तक की अपने कपडे पहनना सब कुछ आप अपने हाथो के उपयोग की मदद से करते है, नाशता खाने से लेकर गाडी में बैठने तक सब कुछ आप अपने इन्ही हाथो की मदद से कर पाते है | किन्तु आप ऐसा मान ले की अगर बदकिस्मती से जब आप जैसे ही कुछ दूर बढ़ते है तभी आप एक दुर्घटना का शिकार हो जाते है, और तभी उस दुर्घटना में आप ना चाहते हुए भी अपना हाथ खो देते है | अब जिस हाथ का प्रयोग करके हम आज जिस मुकाम तक पहुंचे है वह अगर हम खो देते है, तो हमें अब अपनी जिंदगी निष्क्रिय लगने लगेगी.
वह हाथ जो हमारे शरीर से अलग हो चूका है वह हमे इंसान होने का दर्जा देता है और जानवरों से अलग करता है, यही हाथ हमारी मानव सभ्यता को आगे बढ़ने में मदद करता है और हमें इस समाज में बने रहने में मदद करता है|
करीब-करीब एक मिलियन लोग इस तरह की विकलांगता से पीड़ित है, और कई लोग अपने और भी अंगो की इसी तरह की विकलांगताओं से पीड़ित है, और ये ना सीर्फ हमारे भविष्य को बल्कि हमारे सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करता है|
तो अब यह बात आती है की क्या हमारी मानव सभ्यता हाथ पर हाथ रख कर बैठी रहेगी, क्या हम इसका कोई उपाए नहीं खोज पाएंगे, यदि ऐसा है तो मै इसका जवाब " ना " के रूप में देना चाहूंगा | क्योकि हमारे दुनिया भर के वैज्ञानिको ने इसका एकसाथ हल खोज निकला है , उन्होंने एक ऐसा कृत्रिम हाथ बनाने का दावा किया है, जो कि मनुष्य की मष्तिष्क की तंत्रिकाओं से जुड़ कर एकदम मूल हाथ की जगह ले सकता है, और यह पूरी तरीके से एकदम सच मुच् के हाथ के जैसा कार्य कर सकता है| इसको बनाने में एक बहुत ही नई तरह की तकनिकी का उपयोग किया गया है जिसको हम आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के नाम से भी जानते है |
बायोनिक आर्म तकनीक पूरी तरह से ईएमजी(EMG) तकनीक पर आधारित है। EMG का मतलब इलेक्ट्रोमोग्राम है। यह एक नैदानिक परीक्षण है जो मांसपेशियों के विद्युत गतिविधि को आराम करने और संकुचन के दौरान रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है। यह मांसपेशियों और तंत्रिका कोशिकाओं के स्वास्थ्य का मूल्यांकन करता है जो उन्हें नियंत्रित करते हैं। इस परीक्षण के दो घटक हैं:
1. तंत्रिका चालन अध्ययन और
2.सुई ईएमजी।
चलिए अब जानते है की कैसे एक प्रॉस्थेटिक आर्म काम करती है| पहेली बात की ये सर्जिकल सेटअप और तकनिकी दोनों ही इस उपलब्धि को संभव बनाते है, और जो कि इस प्रक्रिया को काफी ज्यादा आश्चर्यचकित बनाती है |
"बायोनिक आर्म" तकनीक मुख्य रूप से विच्छेदन के दो तथ्यों के कारण संभव है। सबसे पहले, मस्तिष्क में मोटर कॉर्टेक्स (स्वैच्छिक मांसपेशी आंदोलनों को नियंत्रित करने वाला क्षेत्र) अभी भी नियंत्रण संकेत भेज रहा है, भले ही कुछ स्वैच्छिक मांसपेशियां नियंत्रण के लिए उपलब्ध नहीं हों; और दूसरा, जब डॉक्टर एक अंग को विच्छेदन करते हैं, तो वे उन सभी तंत्रिकाओं को नहीं हटाते हैं जो एक बार उस अंग को संकेत देते हैं। इसलिए यदि किसी व्यक्ति की बांह चली गई है, तो काम करने वाले तंत्रिका स्टब्स हैं जो कंधे में समाप्त होते हैं और बस अपनी जानकारी भेजने के लिए कहीं नहीं है। यदि उन तंत्रिका अंत को एक कामकाजी मांसपेशी समूह में पुनर्निर्देशित किया जा सकता है, तो जब कोई व्यक्ति सोचता है कि "हाथ से संभाल लो," और मस्तिष्क नसों को संबंधित संकेत भेजता है जो हाथ से संवाद करना चाहिए, वे संकेत काम पर समाप्त होते हैं बजाय कंधे के मृत अंत में मांसपेशी समूह में ।
यह पूरी प्रक्रिया तीन मुख्य चरणों के तहत काम करती है ...
1. मस्तिष्क में मोटर प्रांतस्था (स्वैच्छिक मांसपेशी आंदोलनों को नियंत्रित करने वाला क्षेत्र) नियंत्रण संकेत भेजता है जो तंत्रिका स्टब्स तक पहुंचता है (जो विच्छेदन के बाद कंधे में समाप्त होता है)
2. तंत्रिका अंत जो कोहनी, कलाई और हाथ जैसे हाथ के जोड़ों के आंदोलनों को नियंत्रित करते हैं, उन्हें सर्जन द्वारा काम करने वाले मांसपेशी समूह में पुनर्निर्देशित किया जाता है, उदाहरण के लिए छाती की मांसपेशियों का एक सेट। तो मस्तिष्क के संकेत छाती पर समाप्त होते हैं
3. बायोनिक भुजा को नियंत्रित करने के लिए उन संकेतों को पढ़ने के लिए इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं।
जैसा की हम जानते है की आर्टिफीसियल अंग का होना अब मुमकिन है, चुकीं हम अब इक्कीसवीं सदी में जी रहे है, तो अब की तकनीक पहले से अब और भी बेहतर और बहुत ही आगे बढ़ चुकी है| और यही कारण है की आज के युग के वैज्ञानीक इन सब तकनिकी दौड़ में काफी आगे निकल चुके है, और इन सब में हमारा देश भी कतई पीछे नही है| एक भारतीय होने के नाते मै आपको यह बताना चाहता हूँ की यह पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है और इसका मतलब है कि हमारे पर्यावरण पर इसका शून्य प्रभाव है।
हमारे देश ने भी उच्च तकनीक और अपने हुनर का उपयोग करके उच्च गुणवत्ता के आर्टिफीसियल अंगो का निर्माढ़ करने में सफलता हासिल की है| और यही नहीं इसकी लागत हमारे देश की तुलना में बाहर के देशो में काफी ज्यादा है| मतलब की यह तकनिकी हमारे देश में मानक और लगभग औसतन मूल्य एवं लागत के अनुसार उपलब्ध है| इस पर अभी थोड़ा बहुत और कार्य करना शेष है| पर मै आपको बताना चाहता हूँ की आर्टिफीसियल अंग का निर्माण अब पूरी तरह से हमारे देश हो सकता है, जिसका प्रयोग हमारे देश में कुछ लोग कर रहे है|