जीते जी ना समझ सके मरने पर माना भगवान् उसे

देश का महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण को काश हम पहले पहचान लेते तो ऐसी मौत ना मिलती कई बार लगता हैं कि जीते जी उसे अनदेखा करते हैं और मरने के बाद उसे महान बना देते हैं अन्य देशों का तो जायदा पता नहीं लेकिन हिंदुस्तान में तो ऐसा ही होता रहा हैं जहां वशिष्ठ नारायण का इलाज देश नहीं करा पा रहा था वहीं अब उनका अंतिम संस्कार राज्य शाही तरीके से होगा
हम ऐसे क्यू हैं क्या ये हमारी संस्कृति हैं या फिर हमारे संस्कार या सभ्यता ने ऐसा ही सिखाया है
आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती देने वाले गणितज्ञ कों हम लोग संजोह कर नहीं रख पाए धिक्कार हैं मुझे अपने इस समाज पर। जहां समाज मै पहचान के लिए मरना जरूरी हैं
अाओ हम सभी संकल्प ले की दूसरो को स्वतंत्र रूप से क्रियाशील काम करने की आजादी दे और सभी को सकारात्मक सहयोग करे अधिकारी बनकर अपने अधीन लोगो को मजदूर की तरह व्यवहार ना करे।
यही देश की सच्ची श्रद्धांजलि भारत के उस महान सपूत के लिए होगी